भगवान राम ने त्रेतायुग में सेतुबंध के समय गोवर्धन पर्वत को दिया था यह वचन- Devotional Story

कथा। पुराणों में गोवर्धन पर्वत के संबंध में कथा आती है कि वह कभी सुमेरु पर्वत का शिखर हुआ करता था। जब हनुमान जी सेतुबंधन के समय उसे ला रहे थे तो उनके ब्रजभूमि तक पहुँचते-पहुँचते घोषणा हो गई कि सेतुबंधन का कार्य पूरा हो गया है। अब पर्वत लाने की आवश्यकता नहीं है। यह घोषणा सुनकर हनुमान जी ने गोवर्धन को वहीं रख देना चाहा, जहाँ से वे उसे उठाकर ला रहे थे।
ऐसे में गोवर्धन पर्वत ने हनुमान जी से कहा-“तुम मुझे घर से, परिवार से, कुटुंब से अलग करके भगवान की सेवा के लिए ले जा रहे थे, सो तो ठीक था, लेकिन अब मुझे भगवान की सेवा में लगाए बिना मार्ग में यों ही छोड़ देना, यह किसी दृष्टि से उचित नहीं है। हमारे लिए उचित व्यवस्था बनाए बिना छोड़कर मत जाओ।”
हनुमान जी असमंजस में पड़े तो उन्होंने भगवान राम से पूछा – “क्या किया जाए ?” भगवान ने उत्तर में कहा- “गोवर्धन को ब्रज में स्थापित कर दो। अभी तो मेरा राम अवतार है, जब मैं कृष्ण अवतार में आऊँगा तब गोवर्धन को अपना लीलाकेंद्र बनाऊँगा। अभी तो उसे यहाँ सेतु पर रख दिया जाए तो मैं सेतु पार करते समय उसके ऊपर पाँव रखकर निकल जाऊँगा। लौटते समय संभव है कि सेतु का प्रयोग न करना पड़े।
इसलिए ब्रज में गोवर्धन के स्थापित हो जाने पर मैं उस पर गाय चराने के लिए नंगे पाँव विचरण करूंगा, उसके झरनों के जल में स्नान करूँगा, उसकी मिट्टी को अपने शरीर पर लगाऊँगा, उसके फूलों से अपना श्रृंगार करूंगा और अपना संपूर्ण किशोरकाल वहीं गुजारूँगा।” भगवान की इस घोषणा से गोवर्धन संतुष्ट होकर ब्रजभूमि में स्थापित हो गए।
Note: पुराणों में वर्णित कथा के आधार पर।